अनिकेत को लगा शायद अना अपनी पढ़ाई में व्यस्त होगी इसलिए सुबह से अना के फोन ना आने पर वो ज़्यादा परेशान नहीं हुआ और वो भी अपनी पढ़ाई में व्यस्त हो गया। इधर अना का गुस्से से बुरा हाल था। अनिकेत की गर्लफ्रेंड होना उसकी सोच से भी बाहर था। तीन दिन बीत गए थे अना ने एक भी फोन नहीं किया था और ना ही अनिकेत ने उसे फोन किया।
उसकी आँखों में आँसु थे और मन में यही विचार घूम रहे थे ….. कहीं अनिकेत के लिए उसकी दोस्ती बोझ तो नहीं? अगर उसके फोन करने या ना करने से अनिकेत को कोई फर्क नहीं पड़ता तो फिर वो फोन कर ही क्यों रही है? शायद अनिकेत के लिए वो सिर्फ उसकी बचपन की दोस्त है, इससे ज्यादा कुछ नहीं।
वो बेकार में ही उलझा रही है खुद को अनिकेत में। अगर अनिकेत किसी को पसन्द करता है तो इसमें गलत क्या है, वैसे भी अनिकेत ने उससे कौन सा वादा किया है भविष्य को लेकर, जो वो इतनी परेशान हो रही है।
अना यह सब सोच ही रही होती है तभी अनिकेत का फोन आता है…..
अनिकेत हैरान हो जाता है और कहता है….मेरी गर्लफ्रेंड? क्या नाम है मेरी गर्लफ्रेंड का जरा मैं भी तो सुनूँ?
तीन दिन पहले जब तुम्हें फोन किया था तो फोन एक लड़की ने उठाया था और उसने अपना नाम पाखी बताया था। उसी ने कहा वो तुम्हारी गर्लफ्रेंड है।
अनिकेत ने अपने हँसी को रोकते हुए अना को चिढ़ाने के इरादे से कहा……. माफ़ कर दो अना मैं तुम्हें बताना भूल गया पाखी के बारे में। हमें साल हो गया है एक दूसरे के साथ।
मांग तो रहा हूँ माफ़ी अब और क्या करूँ? लेकिन मेरी गर्लफ्रेंड होने या ना होने से हमारी दोस्ती पर क्या फर्क पड़ता है? पाखी मेरी गर्लफ्रेंड है और तुम मेरी सबसे खास दोस्त, दोनों ही रिश्ते अलग - अलग हैं अना।
मुझे फ़र्क पड़ता है अनिकेत। मैं सारी उम्र तुम्हारी खास दोस्त बनकर नहीं गुजारना चाहती। मुझे लगा था तुम भी वही महसूस करते होंगे मेरे लिए जो मैं तुम्हारे लिए करती हूँ।
तुम क्या महसूस करती हो मेरे लिए अना?
अना ने गुस्से से कहा….कुछ नहीं अनिकेत। मैं फोन रख रही हूँ, बाद में बात करते हैं।
अना प्लीज फोन मत रखना, सुनो कुछ लिखा है तुम्हारे लिए….
"मेरी सुबह की शाम है तू,
मेरी साँसों में बहती रवानगी।
तू है तो लगता है, जिन्दा हूँ मैं,
तेरे बिना सुनसान खंडहर सी है जिंदगी।
तू मेरी आदत है या ज़रूरत, नहीं जानता मैं
तू साथ है, बस जीने के लिए यही ख्याल काफी है।"
दोनों चुप थे, सिर्फ ख़ामोशी बोल रही थी दोनों के बीच।
अना के दिल को छू गयीं थीं अनिकेत की कही यह पंक्तियाँ लेकिन मन में पाखी ही घूम रही थी। अना ने जब कुछ नहीं कहा तो अनिकेत ने ही हारकर कहा……. मेरे अतीत में एक लड़की थी, वही लड़की वर्तमान भी है और भविष्य भी है मेरा और उस लड़की का नाम अना है।
पाखी के दिल में मेरे लिए भावनाएं थी जिन्हें मैंने सिरे से नकार दिया था। शायद इसलिए उसने ऐसी हरकत की। अब और कोई जवाब चाहिए अना?
हाँ चाहिए.... तुम और तुम्हारा ढेर सारा वक़्त।
अभी और इंतज़ार लिखा है किस्मत में अना। हम दोनों के लिए हमारे सपनों को पूरा करना बहुत जरूरी है। एक बार हम दोनों अपनी-अपनी मंजिल पर पहुँच जाए, फिर हमारा सारा वक़्त एक दूसरे के लिए ही होगा अना।
ठीक कहा तुमने अनिकेत। मैं इंतज़ार करुँगी उस वक़्त का जब अनिकेत के साथ अना होगी और मुम्बई की बारिश में भीगते हमारे जज्बात।
पाखी को मेरा शुक्रिया कहना। आज एहसास हुआ जिंदगी में कुछ भी बेवजह नहीं होता। आज पाखी की वजह से मुझे वो सुनने को मिला, जिसे सुनने के लिए मेरे कान कब से तरस रहे थे। हमेशा से सोचती थी कब वो दिन आयेगा जब अनिकेत मेरे लिए कुछ लिखेगा। अच्छा लगा जो भी तुमने मेरे लिए कहा। तुम्हारी उन पंक्तियों ने मुझे और भी करीब कर दिया तुम्हारे।
अनिकेत के होंठों पर मुस्कुराहट थी और दिल में सुकून था……..जब भी तुम्हें खत लिखता तो "मेरी अना" लिखने का बहुत मन करता था लेकिन फिर रोक लेता था। यूँ तो हम दोनों ही हमउम्र हैं लेकिन जब स्कूल में पड़ता था तो अजीब लगता था यह सब बातें करना। ऐसा लगता था जैसे कोई स्कूल में जाने वाला छोटा लड़का अपनी से बड़ी उम्र के लड़की के प्यार के चक्कर में पड़ गया है।
अना और अनिकेत दोनों ही इस बात पर खूब हंसे।
तभी अना ने कहा….स्कूल में पढ़ने वाला बच्चा अब कॉलेज में पढ़ने वाला युवा बन गया है। जो उस वक़्त नहीं कहा, अब कह सकते हो।
तभी अनिकेत ने धीरे से कहा….."मेरी अना' और फिर ना जाने कितनी बार कहा होगा "मेरी अना"।
अना को आज लग रहा था जैसे वो स्वयं पर अपना अधिकार खो चुकी है, आज वो जैसे पूरी तरह से अनिकेत की हो गयी है। अपने सारे जज़्बात वो अनिकेत के नाम कर चुकी थी।
इधर अना इन एहसासात से गुज़र रही थी, उधर अनिकेत भी दिल से आज अना को अपना मान चुका था। दूर होकर भी वो अना को अपने बेहद करीब महसूस कर रहा था।
अना ने बी ए के अंतिम साल की परीक्षा के बाद फ्रैंकफिन इंस्टिट्यूट में दाखिला ले लिया था। घर में पिता के काफी विरोध के पश्चात भी अना अपने फैसले पर अडिग रही। ना उसे पिता से आर्थिक सहायता की आवश्यकता थी , ना ही किसी आत्मिक संबल की। उसके लिए उसकी माँ और अनिकेत का साथ ही काफी था, जीवन की कठिन राहों में प्रेरित करने के लिए।
छह महीने का कोर्स था एविएशन, हॉस्पिटैलिटी, ट्रेवल एंड कस्टमर सर्विस में। सप्ताह में सिर्फ तीन दिन दो घँटे की क्लास होती थी अना की। उसने कोचिंग क्लास में पढ़ाना बंद कर दिया था और शाम के समय ऑक्सफ़ोर्ड इंस्टिट्यूट में कॉलेज के छात्रों को अंग्रेजी पढ़ाना शुरू कर दिया था।
अनिकेत भी कॉलेज की पढ़ाई में व्यस्त हो गया था। इस वक़्त दोनों का एक ही लक्ष्य था अपने सपनों को पूरा करना, और युवा जोड़ों की तरह उनके पास समय नहीं था घण्टों फोन पर बातें करने का। उनके अनुसार पहले करियर था, भावनाएं बाद में।
अना ने जबसे फ्रैंकफिन इंस्टिट्यूट में दाखिला लिया था, तब से उसके व्यक्तित्व में एक अलग ही निखार आ गया था। उसका पूरा व्यक्तित्व ही बदल चुका था। अब वो पहले से ज़्यादा आकर्षक लगने लगी थी। कई बार उसने अनिकेत को कहा कि वो उसे देखना चाहती है और साथ ही यह भी चाहती है कि अनिकेत उसे देखे।
लेकिन अनिकेत ने सख्ती से मना कर दिया था। उसका कहना था कि वो जब मिलेंगे तभी एक दूसरे को देखेंगे। वो चाहता था कि उनके बीच सरप्राइज एलिमेंट बना रहे। एक दूसरे को इतने सालों बाद देखने की ख़ुशी को वो मिलकर, उसे छूकर महसूस करना चाहता था।
अना कभी-कभी अनिकेत की बातें समझ नहीं पाती थी। वो अपने भीतर आए हर बदलाव से अनिकेत को रूबरू करवाना चाहती लेकिन अनिकेत ठहरा लेखक। वो हमेशा दुनिया से अलग ही सोचता था। अनिकेत का कहना था...... वो उसे मोबाइल की सख्त सतह पर देखना नहीँ चाहता, वो उसे छूकर महसूस करना चाहता है ताकि उस पल को वो हमेशा के लिए सहेज कर रख सके। अना जब अनिकेत के नज़रिये से सोचती थी तब उसे उसकी हर बात सही लगती थी। किसी भी रिश्ते की सफलता के लिए यही तो जरुरी है एक दूसरे के नजरिये से सोचना और उसे स्वीकार करना।
Sandhya Prakash
22-Mar-2022 01:11 PM
Bahut badhiya khani
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Seema Priyadarshini sahay
19-Feb-2022 04:51 PM
बहुत बढ़िया भाग..
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Sandhya Prakash
19-Feb-2022 02:25 PM
Very good good good story
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